श्री रुद्राष्टकम्
______________________
नमामीशमीशान निर्वाण रूपं विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपम्।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम्॥१॥
अर्थ:
मैं ईश्वर को नमस्कार करता हूँ, जो इन्द्रियों और मन से परे हैं। जो संपूर्ण ब्रह्मांड
में व्याप्त और वेदों के स्वरूप हैं।
मैं उस शिव की भक्ति करता हूँ, जो निर्विकार, निराकार और निरामय हैं।
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्।
करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसारपारं नतोऽहम्॥२॥
अर्थ:
जो निराकार हैं और जिनका आधार ओंकार है। वे महाकाल हैं, सभी कालों के भी काल हैं और
कृपालु हैं।
मैं ऐसे भगवान शिव को नमन करता हूँ।
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम्।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा॥३॥
अर्थ:
जिनका स्वरूप हिमालय के समान धवल है और जिनका तेज लाखों कामदेवों के समान है। उनके
सिर पर गंगा की धाराएँ हैं, भाल पर चंद्रमा और कण्ठ में सर्प हैं।
चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्।
मृगाधीश चार्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि॥४॥
अर्थ:
जिनके कानों में कुण्डल झूल रहे हैं, नेत्र विशाल हैं, और जिनका चेहरा प्रसन्न है।
मैं ऐसे दयालु नीलकण्ठ का
भजन करता हूँ।
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं अखण्डं अजं भानुकोटि प्रकाशम्।
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम्॥५॥
अर्थ:
जो अत्यंत प्रचण्ड और महान हैं। जो त्रिशूलधारी हैं और अज्ञान के अंधकार को दूर करने
वाले हैं।
मैं ऐसे भवानीपति का भजन करता हूँ।
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥६॥
अर्थ:
जो सभी कलाओं से परे और सदा मंगलकारी हैं। जो मोह का नाश करते हैं, ऐसे पुरारि शिव
मेरी रक्षा करें।
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्।
न तावद् सुखं शान्ति सन्तापनाशं प्रसीद प्रभो सर्व भूतेश शम्भो॥७॥
अर्थ:
जब तक भगवान उमानाथ के चरणकमल की भक्ति नहीं होती, तब तक शांति और सुख की प्राप्ति
नहीं हो सकती।
हे शंभो, कृपया मेरी सहायता करें।
न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोऽहम् सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम्।
जराजन्म दुःखौघ तातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो॥८॥
अर्थ:
मैं योग, जप या पूजा नहीं जानता। मैं बस आपका स्मरण करता हूँ। कृपया मुझे संसार के
दुःखों से मुक्त करें।
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति॥
अर्थ:
जो भक्तिपूर्वक इस रुद्राष्टक का पाठ करते हैं, उन पर भगवान शंकर प्रसन्न होते हैं।
॥ इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥
0 Comments